शिरगुल महराज मंदिर

चूड़धार, 3,647 मी (11,965 फीट) पर स्थित है जो भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है।यह सिरमौर जिले की सबसे ऊँची चोटी है और बाहरी हिमालय में स्थित सबसे ऊँची चोटी भी है। शिखर के नीचे भगवान शिरगुल देवता का एक देवदार-छत वाला मंदिर है जो भगवान शिव (चूड़ेश्वर महादेव) को समर्पित एक आवास है। सिरमौर, चौपाल और सोलन क्षेत्र के स्थानीय लोगों के लिए इस मंदिर का गहरा महत्व है। चूड़धार को ही शिरगुल महाराज के नाम से जाना जाता है।यह मंदिर प्राचीन शैली मैं बना है, जिससे इसकी स्थापना काल का पत्ता चलता है।यंहा वर्ष भर सैलानिओ का तांता लगा रहता है। इस देवस्थान को ट्रैकिंग के लिए भी जाना जाता है। चूड़धार का कुल कवर क्षेत्र 56.16 वर्ग किलोमीटर है । चूड़धार में प्रशासन का काम चूड़धार सेवा समिति द्वारा किया जाता है।
चूड़धार चोटी के शीर्ष पर, भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा मंत्रमुग्ध करती हुई दिखाई देती है और साथ ही साथ आपको महाभारत और रामायण जैसे महान भारतीय महाकाव्यों के किस्से भी बताती है।चूड़धार शिमला के पास सबसे आकर्षक ट्रेक में से एक है। धौलाधार, ग्रेटर हिमालय और उत्तराखंड की कुछ विशाल चोटियों जैसे स्वर्गारोहिणी(6,252 मी), बंदरपून (6,316मी), केदारनाथ (6,940मी) और बद्रीनाथ (7,138 मी)की खूबसूरत चोटियों को आप यहां से तेज धूप से देख सकते हैं।
महादेव त्रिशूल (चूड़धार)
चूड़धार को चांदनी में पहने जाने वाले 'चूर चंदानी' के रूप में भी जाना जाता है। शिखर तक पहुंच तीन पक्षों से की जा सकती है; नौराधार के माध्यम से: 16 किमी (सिरमौर), सराइन: 8 किमी (चौपाल, शिमला) और पुलवाल: 8 किमी। सबसे लोकप्रिय एक सिरमौर जिले के नौराधार से है,चूड़धार जाने के लिए गर्मियों का मौसम सबसे मुफीद माना जाता है। जिसके बीच में सुंदर हॉल्टिंग बिंदु हैं और चारों ओर एक शानदार दृश्य है। राज्य के सिरमौर जिले में स्थित है, यह एक महान धार्मिक महत्व का स्थान है।


भगवन शिव ने ऐसे की अपने भक्तो के प्राणो की रक्षा
चूरू का टाबरा (चूड़धार )
शिरगुल महाराज मंदिर को लेकर पौराणिक कथाओ मैं शिव भक्त चूरू और  का जिक्र मिलता है।  कथा के अनुसार चूरू अपने पुत्र के साथ इस मंदिर मैं दर्शन के लिए आया था।  उसी समय अचानक एक बड़ा सा सांप न जाने कहा से आ गया। देखते ही देखते वह सांप चूरू और उसके बेटे को काटने के लिए आगे बढ़ने लगा।  तभी दोनों ने भगवान शिव से अपने प्राणो की रक्षा करने की प्राथना की।  कुछ ही क्षणो मैं एक विशालकाय पत्थर उस सांप पर जा गिरा। कहते है की चूरू और उसके बेटे की जान बचने के बाद दोनों ही भगवन शिव के अनन्य भक्त हुए। इस घटना के बाद से मंदिर के प्रति लोगो की श्रद्धा बढ़ती गयी।  साथ ही  नाम भी चूरधार के नाम से प्रसिद्ध हो गया।  इसके आलावा चट्टान का नाम चूरू रख दिया गया।कहा जाता है की हिमाचल प्रवास के दौरान आदि शंकराचार्य ने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी।  इसी स्थान पर चेतन भी मिलती है। जिसे लेकर मान्यता है की यह पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे।

बावडी भर देती है मन्नतों की झोली
मंदिर के पास ही दो बाबड़िया है।  मंदिर जाने वाले सभी श्रद्धालु पहले बावड़ी मैं सनान करते है।  उसके बाद मंदिर मैं प्रवेश करते है। मान्यता है की मंदिर के बाहर बनी दोनों बावड़ीयो  जल अतयंत पवित्र है। कहा जाता है की इनमे से किसी बावड़ी से दो लोटा जल लेकर सिर पर डालने से सभी मन्नते पूरी हो जाती है। चूडधार की बावड़ी मै भक्त ही नहीं बल्कि देवी-देवता भी आस्था की डुबकी लगाते है। इस क्षेत्र मैं जब भी किसी नए मंदिर की  स्थापना होती है तब देवताओ की प्रतिमा को इस बावड़ी मैं सनान कराया जाता है। इसके बाद ही स्थापना की जाती है। चूडधार  मैं किये गए स्नान को गंगाजल की तरह ही पवित्र मन जाता है।
शिरगुल महाराज मंदिर मे दर्शन करने वाले श्रद्धालु की सारी मन्नते तो पूरी होती है। साथ ही अगर वह किसी उलझन या परेशानी मैं होते है तो उन्हें उनका भी समाधान आसानी से मिल जात्ता है।  बता दे की यह समाधान उन्हें मंदिर के पुजारी देते है।कहां जाता है की वह सारी बातें सुनने  शिरगुल महाराज को साक्षी मानकर समाधान बताते है। कहा जाता है की चूडधार पर्वत के पास ही हनुमान जी को संजीवनी बूटी मिली थी।  सर्दिओ और बरसात मैं यहा भारी बर्फबारी होती है।  बता दे की यह चोटी बर्ष  में ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती है।  चूड़धार जाने के लिए गर्मियों का मौसम सबसे मुफीद माना जाता है।